दुरत नहिं नेह अरु सुगंध-चोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम गुंड मलार


दुरत नहिं नेह अरु सुगंध-चोरी।
कहा कोउ कहै, तू सुनति काहैं न रहै, तनहिं कत दहै सुनि सोख मोरी।।
लोग तोहिं कहत हैं, पाप कौं गहत हैं, कहा धौं लहत हैं, सुनहु मोरी।
खरिकहूँ नहिं मिले, कहैं कह अनभले, करन दै गिले, तू दिननि थोरी।।
नंद को सुवन अरु सुता बृषभानु की, हँसत सब कहैं चिरजीव जोरी।
सूर-प्रभु कहाँ अपनैं भवन, मैं लखी तोहिं तोसी न औरी।।1735।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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