दुतकारो-डाँटो सदा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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दोहा


दुतकारो-डाँटो सदा, करो घोर अपमान।
सुख सब छीनो, दुःख दो, मार करो बेभान॥
कभी न निकलेगी जरा मेरे मुख से आह।
यही कहूँगी बिहँस मैं-’वाह, वाह, प्रिय! वाह’॥
तुमने अपनी वस्तु को बरता मन-‌अनुसार।
छोड़ा-बिसराया नहीं यह क्या थोड़ा प्यार?
जो मन भाये, सो करो भला-बुरा व्यवहार।
पर मन में रखो सदा, यही करो इकरार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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