दुख दूर मत करो नाथ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग तोड़ी - ताल कहरवा


दुःख दूर मत करो नाथ! दो शक्ति घोर दुख सहने की।
दुख में किंतु कृपा-सुख अनुभव कर, कृतज हो रहने की॥
सुख मत दो, पर हरण करो हरि! भोग-सुखों की सारी भ्रान्ति।
देख सदा सर्वथा कृपा तव, अनुभव करे चित्त नित्त शान्ति॥
दुख में कभी न रोऊँ मैं, सुख में भी कभी नहीं फूलूँ।
दुख-सुख उभय वेष में लूँ पहचान तुम्हें, न कभी भूलूँ॥
सुख में कभी न जागे मेरे मनमें किंचित्‌‌ भी अभिमान।
दुख में तुमपर कभी न हो संदेह तनिक, मेरे भगवान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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