दीनबन्धो कृपासिन्धो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग ककरा - ताल रूपक


दीनबन्धो! कृपासिन्धो! कृपाबिन्दू दो प्रभो।
उस कृपा की बूँद से फिर बुद्धि ऐसी हो प्रभो॥
वृत्तियाँ द्रुतगामिनी हों जा समावें नाथ में।
नदी-नद जैसे समाते हैं सभी जलनाथ में॥
जिस तरफ देखूँ उधर ही दरस हो श्रीराम का।
आँख भी मूँदूँ तो दीखै मुख-कमल घनश्याम का॥
आपमें मैं आ मिलूँ प्रभु! यह मुझे वरदान दो।
मिलती तरंग समुद्र में जैसे मुझे भी स्थान दो॥
छूट जावें दुःख सारे, क्षुद्र सीमा दूर हो।
द्वैत की दुविधा मिटै, आनन्द में भरपूर हो॥
आनन्द सीमा-रहित हो, आनन्द पूर्णानन्द हो।
आनन्द सत-‌आनन्द हो, आनन्द चित-‌आनन्द हो॥
आनन्द का आनन्द हो, आनन्द में आनन्द हो।
आनन्द को आनन्द हो, आनन्द ही आनन्द हो॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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