दिन ही दिन गोपिन तन छीन।
सुनहु हिम रितु बिरह प्रभु कै, कमलिनी ज्यौं दीन।।
जोग कथा सँदेस दिनकर किरनि हरि हरि लीन।
अवधि पंक समेत सूखी, सुनहु पाइ कलीन।।
हम बिवाद सिवार उरभी, प्रेम साहम कीन।
रूप भँवर सिंगार तजि कै, दुखहिं सदा मलीन।।
चरन पकरि पुकारि बिनती, करति स्याम अधीन।
‘सूर’ सावन बरषि कै व्रज, ज्याइबै परवीन।। 167 ।।