दिन-दिन मुरली ढोठि भई।
रहति रही बन्झार पात मैं, सो भई सुधामई।।
प्रगटहि भाग सुहागिनि हरि की, अनुरागी हरि याके।
धनि धनि बंसी, भए रहत हैं, स्याम सुंदर बस जाके।।
वाकौ भाग सुहाग साँचिलौ, नैंकु नहीं संग त्यागत।
सूर-स्याम राजा, वह रानी, वाकी मरि को लागत।।1273।।