दान मांगत ही में आनि कछु कीयो -चतुर्भुजदास दान मांगत ही में आनि कछु कीयो। धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥1॥ छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो। चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥2॥ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंचतुर्भुजदास के पद मैया मोहि माखन मिसरी भावे • मंगल आरती गोपाल की • भोर भये जसोदा जू बोलैं • दान मांगत ही में आनि कछु कीयो • माखन की चोरी के कारन • मनमोहन अद्भुत डोल बनी • रावल के कहे गोप • श्री गोवर्धन वासी सांवरे लाल • गोवर्धन गिरिसघनकंदरा • रत्न जटित कनक थाल • बैठे लाल फूलन की चौखंडी • गोबिंद चले चरावन गैया • फूलन की मंडली मनोहर • वारंवार श्रीयमुने गुणगान कीजे • प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले • चित्त में श्री यमुना, निशिदिन जु राखो • महामहोत्सव श्री गोकुल गाम • हेत करि देत श्री यमुने वास कुंजे • जसोदा! कहा कहौं हौं बात वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः