दान देति को झगरौ करिहौ।
प्रथमहिं यह जंजाल मिटावहु, तब तुम हमहिं निदरिहौ।।
कहत कहा निदरे से हौ तुम, सहज कहतिं हम बात।
आदि बुन्यादि सबै हम जानतिं, काहे कौं सतरात।।
रिस करि-करि मटुकी सिर धरि धरि डगरि चलीं सब ग्वारिनि।
सूर स्याम अंचल गहि झिरको, जैहौ कहा बजारिनि।।1544।।