दवानल अँचै ब्रज-जन बचायौ।
घरनि आकास लौं ज्वाल-माला प्रबल,
घेरि पहुँपास ब्रजबास आयौ।
भए बेहाल सब देखि नँदलाल तब,
हँसत ही ख्याल ततकाल कीन्हौ।
सबनि मूँदे नैन, ताहि चितये सैन,
तृषा ज्यौं नीर दव अँचे लीन्हौ।
लखौ अब नैन भरि, बुझि गई अगिनि झरि,
चितै नरनारि आनंद भारी।
सूर प्रभु सुख दियौ, दवानल पी लियौ,
कहत सब ग्वाल धनि-धनि मुरारी।।597।।