दधि लै मथति ग्‍वालि गरबीली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



दधि लै मथति ग्‍वालि गरबीली।
रुनक-झुनक कर कंकन बाजै, बाहँ डुलावति ढीली।
भरी गुमान बिलोवति ठाढ़ो, अपनैं रंग रँगीली।
छबि की उपमा कहि न परति है, या छवि की जु छबोली।
अति बिचत्र गति कहि न जाइ अव, पहिरे सारी नीली।
सूरदास प्रभु माखन माँगत नाहिं न देति हठोली।।299।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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