थांने कांई कांई कह समझाऊं -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अनुनय


राग सोरठ


थाँने काँई काँई कह समझाऊँ, म्‍हाँरा बाला गिरधारी ।।टेक।।
पूर्ब जनम की प्रीत हमारी, अब नहिं जात निवारी ।
सुंदन बदन जोवते सजनी, प्रीत भई छे भारी ।
म्‍हाँरे घरे पधारो गिरधर, मंगल गावै नारी ।
मोती चौक पूराऊँ बाल्‍हा, तन मन तो पर वारी ।
म्‍हारो सगपण तोसूँ साँवलिया, जुगसूँ नहीं विचारी ।
मीराँ कहे गोपिन को बाल्‍हो, हमसूँ भयो ब्रहाचारी ।
चरण सरण है दासी तुम्‍हारी, पलक न कीजै न्‍यारी ।।54।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. थाँने = तुझै। काई-काई = क्या क्या, किस प्रकार। वाल्हा = वल्लभ, प्यारा। जोवते = देखते ही। छे = है। मोती = मोतियों द्वारा। सगपण = सगापन संबंध। जुगसूं = जगत् वा संसार के लोगों से। चरण = चरणों की। पलक = क्षण भर के लिये भी। न्यारी = अलग।

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