त्वाष्ट्र

त्वाष्ट्र एक प्रकार का अस्त्र था, जिसका उल्लेख पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' में मिलता है।[1]

  • 'महाभारत द्रोणपर्व'[2] में एक स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य तथा अर्जुन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है। यहाँ उल्लेख मिलता है कि द्रोणाचार्य कुन्तीपुत्र अर्जुन को जीतने की इच्छा से जिस-जिस अस्त्र का प्रयोग करते थे, उस-उसको पाण्डुपुत्र अर्जुन हँसते हुए तत्काल काट देते थे। जब द्रोणाचार्य अर्जुन की अपेक्षा अपनी विशेषता न सिद्ध कर सके, तब अस्त्रमार्गों के ज्ञाता गुरुदेव ने दिव्यास्त्रों को प्रकट किया। द्रोणाचार्य के धनुष से क्रमशः छूटे हुए ऐन्द्र, पाशुपत, त्वाष्ट्र, वायव्य तथा वारूण नामक अस्त्र को अर्जुन ने तत्काल शान्त कर दिया। जब पाण्डुकुमार अर्जुन आचार्य के सभी अस्त्रों को अपने अस्त्रों द्वारा विधिपूर्वक नष्ट करने लगे, तब द्रोण ने परम दिव्य अस्त्रों द्वारा अर्जुन को ढक दिया। परंतु विजय की इच्छा से वे पार्थ पर जिस-जिस अस्त्र का प्रयोग करते थे, उस-उसके विनाश के लिये अर्जुन वैसे ही अस्त्रों का प्रयोग करते थे।"

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारतकोश डिस्कवरी पुस्तकालय |संपादन: संजीव प्रसाद 'परमहंस' |पृष्ठ संख्या: 130 |
  2. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 188 श्लोक 19-39

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