तौ हम मानै बात तुम्हारी।
अपनौ ब्रह्म दिखावहु ऊधौ, मुकुट पितांबर धारी।।
मनिहै तब ताकौ सब गोपी, सहि रहिहैं बरु गारी।
भूत समान बतावत हमकौ, डारहु स्याम बिसारी।।
जे मुख सदा सुधा अँचवत है, ते विष क्यौ अधिकारी।
'सूरदास' प्रभु एक अंग पर, रीझि रही ब्रजनारी।।3804।।