तौ लगि बेगि हरौ किन पीर -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री


     

तौ लगि बेगि हरौ किन पीर ?
जौ लगि आन न आनि पहुँचे, फेरि परैगी भीर।
अबहिं निवछरौ समय, सुचित ह्वै हम तो निधरक कीजै।
औरौ आइ निकसिहैं तातै, आगै है सो लीजै।
जहाँ तहाँ तै सब आवैगे सुनि सुनि सस्‍तौ नाम।
अब तौ परयौ रहैगौ दिन-इिन तुमकौं ऐसौ काम।
यह तो बिरद प्रसिद्ध भयौ जग, लोक-लोक जस कीन्‍हौ।
सूरदास प्रभु समुझि देखियै मैं बड़ तोहिं करि दीन्‍हौं।।191।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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