तौ तू उड़ि न जाइ रे काग।
जौ गुपाल गोकुल कौ आवै, तौ ह्वैहै बड़भाग।।
दधि ओदन भरि दोनौ दैहौ, अरु अंचल की पाग।
मिलि हौ हृदय सिराइ स्रवन सुनि, मेटि विरह के दाग।।
जैसै मातु पिता नहिं जानत, अतर कौ अनुराग।
'सूरदास' प्रभु करै कृपा जब, तब तै देह सुहाग।। 3456।।