तोहिं कवन मति रावन आई -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
तोहिं कवन मति रावन आई?
जाकी नारि सदा नवजीवन, सो क्यौं हरै पराई।
लंक सौ कोट देखि जानि गरवहि, अरु समुद्र सी खाई।
आजु-काल्हि, दिन चारि-पाँच मैं, लंका होति पराई।
जाकैं हित सैना सजि आए, राम लछन दोउ भाई।
सूरदास प्रभु लंका तोरैं, फेरैं राम-दुहाई॥117॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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