तै जु नीलपट ओट दियौ री।
सुनि राधिका स्यामसुंदर सौ, बिनहिं काज अति रोष कियौ री।।
जल-सुत-बिंब मनहुँ जल राजत, मनहुँ सरद ससि राहु लियौ री।
भूमि बिसन किधौ कनक खंभ चढ़ि, मिलि रस ही रस अमृत पियौ री।।
तुम अति चतुर सुजान राधिका, कत राख्यौ भरि मान हियौ री।
'सूरदास'-प्रभु-अँग-अँग नागरि, मनहुँ काम कियौ रूप बियौ री।।2770।।