तेरे बिना नहीं क्षण भर भी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग नट - तीन ताल


तेरे बिना नहीं क्षण भर भी है मेरा सभव अस्तित्व।
तू ही मेरी जीवन-जीवन, तू ही मेरी जीवन-तत्त्व॥
आत्मा तो तू ही है मेरी, तू ही मेरी है आधार।
तुझसे ही मैं हूँ, तुझसे ही चलते ये सारे व्यापार॥
नहीं गया था तुझे त्याग मैं, नहीं कहीं जा सकता त्याग।
मेरे प्राणों का है बस, परमाश्रय, तेरा ही अनुराग॥
देह गया था मथुरा, सो भी लोक-दृष्टि से ही केवल।
पर कर दिया उसी ने आह्लादिनि! तुझको अत्यन्त विकल॥
तेरी इस व्याकुलतासे ये प्राण रो उठे, हो उद्विग्र।
प्राणरूप-‌अनुराग इसीसे हु‌आ तुरंत शोक-संलग्र॥
शोकाकुल अनुराग-प्राण में उठी त्वरित आतुरता जाग।
खड़ा कर दिया मुझे उसीने तेरे सम्मुख ला, बड़भाग॥
कर अपराध क्षमा हे करुणामयी! क्षमामयि! स्नेहागार!
निज-स्वरूप-महिमामयि स्वामिनि! नित्य सहज ही रहित विकार॥
हो प्रसन्न-मुख देख सकृत इस अपने आश्रित तनकी ओर।
ह्लादिनि! मुझे हँसा दे, हँसकर, रससागरे! न जिसका छोर॥
नहीं समझना कभी मुझे रचकभर भी अपनेसे भिन्न।
दिव्य अभिन्न प्रेमरस-सागर नित्य-निरन्तर अपरिच्छिन्न॥
प्रियतम के सुन वचन, भाव दर्शन कर, मैं हो गयी निहाल।
सदा बिकी बेमोल, पड़ी आतुर प्रिय-पद-पंकज तत्काल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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