तेरी जीवन मूरि मिलहि किन माई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरी


तेरी जीवन मूरि मिलहि किन माई।
महाराज जदुनाथ कहावत, तबहिं हुते सिमु कुँवर कन्हाई।।
पानि परे भुज धरे कमल मुख, पैखत पूरब कथा चलाई।
परम उदार पानि अवलोकत, हीन जानि कछु कहत न जाई।।
फिरि फिरि अब सनमुख ही चितवति, प्रीति सकुच जानी जदुराई।
अब हँसि भेंटहु कहि मोहि निज जन, बाल तिहारौ नंद दुहाई।।
रोम पुलक गद गद तन तीछन, जलधारा नैननि बरषाई।
मिले सु तात, मात, बाधव सब, कुसल कुसल करि प्रश्न चलाई।।
सासन देइ बहुत करी विनती, सुत धोखै तब बुद्धि हिराई।
‘सूरदास’ प्रभु कृपा करी अब, चितहिं धरे पुनि करी बड़ाई।। 4283।।

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