तू सुनि कान दै री मुरली धुनि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


तू सुनि कान दै री मुरली धुनि, तेरे गुन गावै स्याम कुंज भवन।
सनमुख ह्वै ताही कौ अंक भरै, तेरौ तन परसि जो आवत पवन।।
तेरौ स्वरूप आनि उर अंतर, नैन मूँदि रहै करत न गवन।
'सूरदास' प्रभु कै तू रमि रही, यातै नाम राधिकारवन।।2803।।

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