तूँ नागर नंदकुमार -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग अलैया


तूँ नागर नंदकुमार, तोसों लाग्‍यो नेहरा ।। टेक ।।
मुरली तेरी मन हर्यों, बिसर्यौ ग्रिह ब्‍योहार ।
जबतैं स्रवननि धुनि परी, ग्रिह अँगना न सुहाइ ।
पारधि ज्‍यूँ चूकै नहीं, मृगी वेधि दई आय ।
पानी पीर न जाणई, मीन तलफि मरि जाइ ।
रसिक मधुप के मरम को, नहि समुझत कँवल सुभाइ ।
दीपक को जु दया नहीं, उड़ि उड़ि भरत पतंग ।
मीराँ प्रभु गिरधर मिले, (जैसे) पाणी मिल गयो रंग ।।105।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नागर = चतुर, सभ्य, रसिक। तोसें = तुझसे। नेहरा = नेह, प्रेम। ग्रिहव्यौहार = घर का काम काज। तैं = से। पारधि = व्याध। बेधि दई = तीर मार दिया। जाणई = जानता, समझा। सुभाइ = स्वभाव से ही।

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