तुह्मरी एक बड़ी ठकुराई -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग गौरो




तुह्मरी एक बड़ी ठकुराई।
प्रति दिन जन-जन कर्म सबासन नाम हरै जदुराई।
कुसुमित धर्म-कर्म कौ मारग जउ कोउ करत बनाई।
तदपि विमुख पाँती सो गनियत, भक्ति हृदय नहिं आई।
भक्ति पंथ मेरे अति नियरैं जब तब कीरति गाई।
भक्ति-प्रभाव सूर लखि पायौ, भजन-छाप नहिं पाई।।93।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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