तुम हौ अंतरजामि कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


तुम हौ अंतरजामि कन्हाई।
निठुर भए कत रहत इते पर, तुम नहिं जानत पीर पराई।।
पुनि-पुनि कहत जाहु ब्रज सुन्दरि, दूरी करौ पिय यह चतुराई।
आपुहि‍ कही करौ पति-सेवा, ता सेवा कौं हैं हम आईं।।
जो तुम कहौ तुमहिं सब छाजै, कहा कहैं हम प्रभुहिं सुनाई।
सुनहु सुर ह्याँईं तनु त्यागैं, हम पैं घोष गयौ नहिं जाई।।1022।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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