तुम लछिमन निज पुरहिं-सिधारौ।
बिछुरन-भेंट देहु लघु बंघू, जियत न जैहै सूल तुम्हा रौ।
यह भावी कछु और काज है, को जो याकौ मेटनहारौ।
याकौ कहा परेखौ-निरखौ, मधु छीलर, सरिता परि खारौ।
तुम मति करौ अवज्ञा नृप की, यह दुख तो आगै कौं गारौ।
सूर सुमित्रा अंक दीजियौ, कौसिल्याहिं प्रनाम हमारौ॥36॥