तुम लछिमन निज पुरहिं-सिधारौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग गूजरी
श्रीराम–वचन लक्ष्ममण के प्रति


  
तुम लछिमन निज पुरहिं-सिधारौ।
बिछुरन-भेंट देहु लघु बंघू, जियत न जैहै सूल तुम्हा रौ।
यह भावी कछु और काज है, को जो याकौ मेटनहारौ।
याकौ कहा परेखौ-निरखौ, मधु छीलर, सरिता परि खारौ।
तुम मति करौ अवज्ञा नृप की, यह दुख तो आगै कौं गारौ।
सूर सुमित्रा अंक दीजियौ, कौसिल्याहिं प्रनाम हमारौ॥36॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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