तुम बिन भूलोइ भूलौ डोलत -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




तुम बिन भूलोइ भूलौ डोलत।
लालच लागि कोटि देवनि के फिरत कपाटनि खोलत।
जब लागि सरबस दीजै उनकौं, तबहीं लगि यह प्रीति।
फल माँगत फिरि जात मुकर ह्वै, यह देवनि की रीति।
एकनि कौं जिय-बलि दै पूजि, पूजन नैंकु न तूठे।
तब पहिचानि सबनि कौं छाँड़े, नख-सिख लौं सब जूठे।
कंचन मनि तजि काँचहि सैतत, या माया के लीन्‍हे।
चारि पदारथ हूँ कौ दाता, सु तौ बिसर्जन कीन्‍हे ?
तुम कृतज्ञ, करुनामय, केसव, अखिल लोक के नायक।
सूरदास हम दृढ़ करि पकरे, अब ये चरन सहायक।।177।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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