तुम जनि सकुचौ प्यारे लालन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मालकोस


तुम जनि सकुचौ प्यारे लालन, रति मानी ताही कै रही अब।
मैं इतनेहि भली मान्यौ प्रीतम, आँगन पग धारे आपुन जब।।
नैन तृप्त भए दरसन देखत, स्रवन तृप्त भए बचन सुने तब।
'सूरदास' प्रभु चरन छुए कहौ रोम रोम पुलकित अँग अँग सब।।2550।।

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