तुम घर जाहु दान को दैहै।
जिहिं बीरा दै मोहिं पठायौ, सो मोसौं कह लैहै।।
तुम घर जाइ बैठि सुख करिहौ, नृप-गारी को खैहै।
अबहीं बोलि पठावैगो री, ता सनमुख की जैहै।।
जान कहै तुमकौं तुम जैहौ, बिधना कैसैं सैहैं।
सूर मोहिं अँटक्यौ है नृप बर, तुम बिनु कौन छुड़है।।1575।।