तुम कौन घोष तै आए -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग बिलाबल
दान लीला




तुम कौन घोष तै आए। तेरे वेष देखि जिय भाए।।
तुम कब तै भए दधिदानी। तुव मन की मैं पहिचानी।।
तुम छाँड़ी अरकयरंती। हम है गृह-लातन-मंती।।
तुम कहियत कुंज बिहारी। हमहूँ वृषभानुदुलारी।।
तुम सेष सहसफन सैनी। मो पत्रग लाजति बेनी।।
तेरै कुटिल अलक अलि मूला। मो सीस बिबिध बिधि फूला।।
तू बृदाबन चद कहावै। मो मुख सम चद न पावै।।
तेरी कमलनयन है नाउँ। हौ अँग अँग कमल सजाऊँ।।
तैरै मोरपच्छ रतिरस। मेरै सिंधु-सुता-सुत संग।।
तेरै कुडलमकर बनाए। मो स्रुति ताटंक लगाए।।
तुम सुंदरता को सीवाँ। मो देखि बिमोहित ग्रीवां।।
तुव कटि पीताबर राजै। मों कुल कटि किंकिनि साजै।।
तुव बाँहैं बरुन की फाँसी। मो भुज मृनाल रुपासी।।
तैरे उर कौस्तुभमनि सोहै। मो उर कुच श्रीफल मोहै।।
तू अनुपमता कर अंद्या। मो कदलि दलिय जुग जंघा।।
तै करज अग्र गिरि राखी। मैं राखे धरि तुहिं आँखी।।
बिनु पुन्य सुजस नहि होई। श्रम करौ बिबिध बिधि कोई।।
तेरौ पदप्रताप जन जानै। मो पद परसत हौ मानै।।
तुम चलहु जमुनजल तीरा। जहँ सीतल मद समीरा।।
करी लोगलता हरि केली। हँसि प्रियाअंस भुज मेली।।
मिलि सुरति रग रस पायौ। जन 'सूरदास' जस गायौ।। 63 ।।

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