तुम कैसै दरसन पावति री।
कैसै स्याम अंग अवलोकति नयी नैननि ठहरावति री।।
कैसै रूप हृदै राखति हो, वै तौ अति झलकावत री।
मोको जहाँ मिलत है माई, तहँ तहँ अति भरमावत री।।
मै कबहूँ नीकै नहि देखे, कह कहौ कहत न आवत री।
'सूर' स्याम कैसै तुम देखति, मोहि दरस नहि द्यावत री।।2064।।