तुम कबके जु भए हौ दानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग पूरबी


तुम कबके जु भए हौ दानी।
मटुकी फोरि, हार गहि तोरयौ, इन बातनि पहिचानी।।
नंद महर की कानि करतिं हौं, न तु करती मेहमानी।
भूलि गए सुधि ता दिन की, जब बांधे जसुदा रानी।।
अब लौं सह्यौ तुम्‍हारी ढीठौ, तुम यह कहत डरानी।
सूर स्‍याम कछु करत न बनिहै, नृप पावै कहुँ जानी।।1479।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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