तुम कत गाइ चरावन जात।
पिता तुम्हारौ नंद महर सौ अरु जसमति सी जाकी मात।
खेलत रहौ आपने घर मैं, माखन दधि भावै सो खात।
अमृत बचन कहौ मुख अपने, रोम-रोम पुलकित सब गात।
अब काहू के जाहु कहूँ जनि, अवति हैं जुवती इतरात।
सूर स्याम मेरे नैननि आगे तैं, कत कहूँ जात हौ तात।।509।।