तुम अलि स्यामहिं जनि पतियाहु।
बहुरोचक इन कपट कहानी, तजे किए तै ब्याहु।।
सुरपति, असुर, बिप्र जीते ब्रज, कित दुख निमिष निवारी।
ते अब कहि पठवत ये बातें, जोग की हृदयबिदारी।।
करनी कान्ह करौ जग जानी, कुल गन आन सँभारे।
‘सूर’ सुदेस होत नहिं गारुड़, कुटिल विकट अहि कारे।।3592।।