तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान।
छूटि गऐं कैसे जन जीवत, ज्यौं पानी बिनु प्रान।
जैसैं मगन नाद-रस सारँग, बधत बधिक बिन बान।
ज्यौं चितवत ससि ओर चकोरी, देखन ही सुख मान।
जैसें कमल होत अति प्रफुलित, देखत दरसन भान।
सूरदास-प्रभु-हरि -गुन मीठे, नित प्रति सुनियत कान।।169।।
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