तुम्हरौ नाम तजि प्रभु जगदीसर, सु तौ कहौ मेरे और कहा बल ?
बुधि-विवेक-अनुमान आपनैं, सोधि गह्यौ सब सुकृतनि कौ फल।
वेद, पुरान, सुमृति, संतनि कौं, यह आधार मीन कौं ज्यौं जल।
अष्ट सिद्धि, नव निधि, सुर संपति तुम बिनु तुसकन कहुँ न कछू लल।
अजामील, गनिका, जु ब्याध, नृग, जासौं जलधि तरे ऐसेउ खल।
सोइ प्रसाद सूरहिं अब दीजै, नहीं बहुत ती अंत एक पल।।।204।।
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