41.राग बिलावल
तुम्हरैं भजन सबहि सिंगार।
जो कोउ प्रीति करै पद-अंवुज, उर मंडप निरमोलक हार।
किंकिनि नूपुर पाट पटंवर मानौ लिये फिरै घर-बार।
मानुष-जनम पोत नकली ज्यौं, मानत भजन-बिना विस्तार।
कलिमल दूरि करन के काजैं, तुम लीन्हौ जग मैं अवतार।
सूरदास-प्रभु तुम्हरे भजन विनु जैसैं सूकर-स्वान-सियार।
42.राग केदारौ माया-वर्णन
विनती सुनौ दीन की चित दै, कैसे तुव गुन गावै।
माया नटी लकुटि कर लीन्हे कोटिक नाच नचावै।
दर-दर लोभ लागि लिए डोलति, नाना स्वांग बनावै।
तुम सौं कपट करावति प्रभु जू, मेरी बुधि भरमावै।
मन अभिलाष-तरंगनि करि करि, मिथ्या निसा जगावै।
सोवत सपने मैं ज्यौं संपति, त्यौं दिखाइ बौरावै।
महा मोहिनी मोहि आतमा, अपमारगहिं लगावै।
ज्यौं दूती पर-बधू भोरि कै, लै पर-पुरुष दिखावै।
मेरे तो तुम पति, तुमहीं गति, तुम समान को पावै।
सूरदास प्रभु तुम्हरी कृपा बिनु, को मो दुख बिसरावै।