तुम्हें यदि सुख हो, हे हृदयेश -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग जंगला - ताल कहरवा


तुम्हें यदि सुख हो, हे हृदयेश!।
विरह-दुख देगा दुःख न लेश॥
तुम्हारा वदन प्रफुल्लित देख।
दुःख की नहीं रहेगी रेख॥
करो तुम अपने मन की, नाथ!
छोड़ दो, चाहे रखो साथ॥
लगेगा शीतल दारुण दाह।
नहीं निकलेगी मुखसे आह॥
एक अनुभवयुत दृढ़ विश्वास।
सदा तुम रहते मेरे पास।
दिखायी पड़ो, रहो या गुप्त।
कभी होते न पास से लुप्त॥
छा रही सुख की मुख-मुसकान।
यही, बस मेरे सुख की खान।
देख तुम रहे सभी सब काल।
सुखी मैं हूँ कि नहीं, हर हाल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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