विरह-पदावली -सूरदास
(सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है-) हे व्रजनाथ! शत्रु कामदेव ने चतुरंगिणी सेना साथ लेकर तुम्हारे गोकुल को घेर लिया है। (मेघ) अत्यन्त गम्भीर ध्वनि में (इस भाँति) गर्जना करते हैं, मानो अपार मतवाले हाथी (गर्जना कर रहे) हों। रथों, पैदल सैनिकों और घोड़ों के (इधर-उधर) पदाघात से उड़ी धूलि के समान बादल उड़ रहे हैं। शस्त्रों के समान बिजली चमक रही है और बगुलों की पंक्ति ध्वजा के समान उड़ रही है। जब-जब मेघ तड़तड़ाते हैं, (तब-तब ऐसा लगता है) मानो आवेश में आकर नगारों पर चोटें की जा रही हों। अनेक प्रकार के कवच पहिने (रंग-बिरंगे) मेढ़करूपी योद्धा मारू राग गाते हुए ‘मार-मार’ पुकार रहे हैं, मयूरों के हरे रंग के (पंख रूप) कवच खुले दिखलायी पड़ते हैं। (अर्थात नाच रहे हैं) और उच्च स्वर से बोल रहे हैं। काले वस्त्र पहिने हुए पपीहे और कोकिल रूपी योधा ‘भागो मत’, ‘भागो मत’, कहते हुए अत्यन्त उत्साह से बार-बार उमड़े पड़ते हैं। हमारा दो हाथों वाह (सहायक) धैर्य (रूपी योधा) अत्यन्त घायल ले गया है, तेज (गर्व) को भी (इन) दुर्जनों ने दलित कर दिया है और (हमारा) मनोरथ (कामना) रूपी जो उत्तम योद्धा था, (वह भी) टुकड़े-टुकड़े होकर (हृदय की) झोली में (स्ट्रेचर पर) डालकर उठा लाया गया है। अहंकाररूपी शूर युद्ध में मारा गया, उसके हृदय को भी शक्ति बेधे है, भय से उसका हाथ पकड़ा नहीं जाता; क्योंकि भालों की नोकों से (उसका सारा शरीर) छिद रहा था। यह रात-दिन युद्ध सिर पर आ पड़ा है, जिसे अत्यन्त संक्षिप्त रूप वर्णन कर रही हूँ। हे नाथ! किससे पुकार करूँ, तुम्हारे अतिरिक्त (मेरे लिये कहीं शरण) स्थान नहीं है। इसलिये जिनका नाम नन्दनन्दन है और जो सुन्दर तथा काले बादलों-जैसे सुख के धाम हैं, कमललोचन हैं, उन्हें हमारी सहायता करने के लिये शीघ्र भेज दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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