तुम्हारौ गोकुल हो ब्रजनाथ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग मलार


तुम्हारौ गोकुल हो ब्रजनाथ।
घेरयौ है अरि मन्मथ लै, चतुरगिनि सेना साथ।।
गरजत अति गभीर गिरा मनु, मयगल मत्त अपार।
धुरवा धूरि उडत रथपायक, घोरनि की खुरतार।।
चपला चमचमाति आयुध, बग धुजा अकार।
परत निसामनि घाउ तमकि घन, तरपत जिहि जिहि बार।।
मारू मार करत भट दादुर, पहिरे विविध सनाह।
हरे कवच उघरे दिखियत है, बरहनि धाली धाह।।
चारे पट धारे चातक पिक, कहत भाजि जनि जाहु।
उनरि उनरि वै आनि कै, जोधा परम उछाहु।।
अति घायल धीरज दुबाहियाँ, तेजहुँ दुरजन दालि।
टूक टूक ह्वै सुभट मनोरथ, आने झोली घालि।।
यह्यौ अहँकार सुखेत सूरमा, सकति रही उर सालि।
हवकत हाथ परै नाही गहिं, रहे नाटसल भालि।।
निसि बासर कै विग्रह आयो, अति संकेतहिं गाउँ।
कापै करौ पुकार नाथ अब, नाहिंन तुम बिनु ठाउँ।।
नंदकुमार स्याम घन सुंदर, कमलनयन सुख धाम।
पठवहुँ बेगि गुहार लगावन, 'सूरदास' जिहिं नाम।। 3313।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः