तुम्हारी स्मृति नित बन साकार -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


तुम्हारी स्मृति नित बन साकार।
चित्तपर रहती मधुर सवार॥
दुःख-सुख देती उभय अपार।
अनिर्वचनीय सु-रस-‌आगार॥
तुम्हारा मधुर समर्पण-भाव।
तुम्हारा संयम शील-स्वभाव॥
दूसरेपन का निपट अभाव।
सदा उपजाता नव-नव चाव॥
बना देता अविलम्ब विदेह।
भरा नेत्रों में पावन स्नेह॥
सदा बरसाता सुख का मेह।
सरस नित ही रखता मन-देह॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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