तुम्हरी रीति हरि पूरब जनम की -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


तुम्हरी रीति हरि पूरब जनम की, अब जु भए मेरे जियहु के गरजी।
बहुत दिननि तै बिरमि रहे हौ, संग बिछोहि हमहिं गए बरजी।।
जा दिन तै तुम प्रीति करी हौ, घटति न बढति तौलि लेहु नरजी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन बिनु, तन भयौ व्यौत बिरह भयौ दरजी ?।। 3401।।

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