तुम्हरी भावती कह्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


तुम्हरी भावती कह्यौ।
यह कहियौ नँदनंद आगै, अति दुख दुसह सह्यौ।।
लेति उसाँस सोच निसि दिन के, नैकु न रूप रह्यौ।
विगलित केस बदन छवि ऐसी, जनु ससि राहु गह्यौ।।
माखन काढि कूबरी लीन्हौ, व्रज मै रह्यौ मह्यौ।
‘सूर’ स्याम रति जाम प्रेम पय, बहुरौ जम्यौ कह्यौ।।4105।।

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