तुमहिं कहत कोउ करै सहाइ।
सो देवता संगहीं मेरैं, ब्रज तैं अनत कहूँ नहिं जाइ।
वह देवता कंस मारैगौ, केस धरे धरनी घिसियाइ।
वह देवता मनावहु सब मिलि तुरत कमल जो देइ पठाइ।
बाबा नंद, झखत किहिं कारन, यह कहि मया मोह अरुझाइ।
सूरदास प्रभु मातु-पिता कौ, तुरतहिं दुख डारयौ बिसराइ।।531।।