तुमसे सदा लिया ही मैंने -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग शिवरंञ्जनी - तीन ताल


तुमसे सदा लिया ही मैंने, लेती-लेती थकी नहीं।
अमित प्रेम-सौभाग्य मिला, पर मैं कुछ भी दे सकी नहीं॥
मेरी त्रुटि, मेरे दोषों को तुमने देखा नहीं कभी।
दिया सदा, देते न थके तुम, दे डाला निज प्यार सभी॥
तब भी कहते-’दे न सका मैं तुमको कुछ भी, हे प्यारी!
तुम-सी शील-गुणवती तुम ही, मैं तुम पर हूँ बलिहारी’॥
क्या मैं कहूँ प्राण-प्रियतम से, देख लजाती अपनी ओर।
मेरी हर करनी में ही तुम प्रेम देखते नन्दकिशोर!॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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