तुमने दिया सदा ही मुझको -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग शिवरञ्जनी - तीन ताल


तुमने दिया सदा ही मुझको, अपना प्यार-दुलार महान।
मैंने सिर न चढ़ाया उसको, किया निरन्तर ही अपमान॥
मैं कृतघ्न अति, नीच नराधम, सभी भाँति अति हीन, मलीन।
दीनबन्धुने दोष न देखे, अपना लिया, जान जन दीन॥
जैसे स्नेहमयी माँ शिशुका मल धोती, नहलाती आप।
स्नेह सिन्धु तुमने वैसे ही किया विशुद्ध, मिटा मल-ताप॥
मेरी निपट नीचता अतिशय, दया तुम्हारी अमित, अपार।
सहज दयावश भस्म कर दिया तुमने मेरा अघ-सम्भार॥
चरण-शरण मिल गयी सदा को, छाया सुधानन्द सब ओर।
उदय हो गया प्रेम-सूर्य अब, मिटा मोह-माया-तम घोर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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