तिहारी लाल मुरली नैकु वजाऊँ।
जौ जिय होति प्रीति कहिबे की, सो धरि अधर सुनाऊँ।।
जैसी तान तुम्हारे मुख की, तैसीयै मधुर उपाऊँ।
जैसै आपु अधर धरि फूँकत, मैं अधरनि परसाऊँ।।
जैसै फिरति रंध्र संग अंगुरी, तैसै मैंहुँ फिराऊँ।
हा हा करति पाइ हौ लागति, बाँस बसुरिया पाऊँ।।
सारँग नट पूरबी मिलै कै, राग अनूपम गाऊँ।
तुम्हरे आभूषन मैं पहिरौ, अपने तुम्है पिन्हाऊँ।।
तुम बैठौ दृढ़ मान साजि कै, मैं गहि चरन मनाऊँ।
तुम राधे, हौ माधौ, माधौ ऐसी प्रीति जनाऊँ।।
यह अभिलाष बहुत मेरै जिय, नैननि यहै दिखाऊँ।
'सूर' स्याम गिरिधरन छबीले, भुज परि कंठ लगाऊँ।।2141।।