तातैं बिपति-उघारन गायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




तातैं बिपति-उघारन गायौ।
स्रबननि माखि सुनी भक्तनि मुख, निगमनि भेद बतायो।
सुवा पड़ावत जीभ लड़ावति, ताहिं विमान पठायौ।
चरन-कमल परसत रिपि-पतिनी, तजि पषान, पद पायौ।
सब-हित-कारन देव अभय पद, नाम प्रताप बढ़ायौ।
आरतिवंत सुनत गज-क्रंदन, फंदन काटि छुड़ायो।
पावँ अबार सु धारि रमापति, अजस करत जस पायौ।
सूर कूर कहै मेरी बिरियाँ बिरद कितै बिसरायौ।।188।।
 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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