तहँइ जाहु जह निसा वसे हो।
जानति हौ पिय चतुर सिरोमनि, नागरि-जागर-राग रसे हौ।।
घूमत हौ मनु प्रिया उरगिनी, नव-बिलास-स्रम-सेज डसे हौ।
काजर अधरनि प्रगट देखियत, नागबेलि रँग निपट लसे हौ।।
स्याम उरस्थल पर नखरेखा, मनहुँ गगन ससि उदित दिसे हौ।
लटपटि पाग महावर के रँग, मानिनि पग पर सीस घसे हौ।।
विगलित बसन, मरगजी माला, पीठि बलय के चिह्न लगे हौ।
'सूरदास' प्रभु प्रियावचन सुनि, नागर नगधर नैकु हँसे हौ।।2503।।