तहँइ जाहु जहँ रैनि रहे बसि।
तब कत दामिनि पद प्रगटित, आए मारन दुअन बान कसि।।
सिथिल सरोज, रोर सुठि सोभित लीसहु तै कछु रही धँसि।
जावक रस मनु संबर अरिगन प्रिया मनाई पद ललाट धँसि।।
बिनु गुन माल मराल तरुन गति मगन चाल पट परत रहत खसि।
चदन चर्चित कुच उर उपटित मनु नव घन मैं उदित दोइ ससि।।
सखियनि समाचार लिखि पठए तन कागद नख लेख रुधिर मसि।
'सूरदास' प्रभु श्रीगुपाल है मानौ जागत गई निसा नसि।। 87 ।।