तहँइ जाहु जहँ रैनि बसे हौ।
काहे कौं दाहन हौं आए, अँग अँग चिह्न लसे हौ।।
अरगज अंग, मरगजी माला, बसन सुगंध भरे हौ।
काजर अधर, कपोलनि बदन, लोचन अरुन धरे हौ।।
पलकनि पीक, मुकुर लै देखौ, ये कौनही करे हौ।
'सूरदास' प्रभु पीठि वलय गड़े, नागरि अंग भरे हौ।।2502।।