तरपत नभ डरपत ब्रज-लोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


तरपत नभ डरपत ब्रज-लोग।
सुरपति की पूजा बिसराई, लै दीन्हौ परबत कौं भोग।।
नंद सुवन यह बुधि उपजाई, कौन देव कह्यौ परबत जोग।
सूरदास गिरि बड़ी देवता, प्रगट होइ ऐसैं संजोग।।861।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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